खुदीराम  बोस जिन्हें सबसे कम उम्र में फांसी दे दी गई जानिए कौन थे ! किस कारण और कितने उम्र में फांसी दे दी गयी !

खुदीराम बोस जो कि भारत के सबसे कम उम्र 18 साल में ही भागवत गीता हाथ मे लिए और हँसते-हँसते सूली पर चढ़ गए !


खुदीराम बोस एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे , जिन्हें सबसे कम उम्र का क्रांतिकारी मानते है। मात्र 18 साल की उम्र में हँसते हँसते सूली पर चढ़ जाने वाले इस नौजवान का जन्म 3 दिसंबर 1889 को हुआ था।
उनके पिता का नाम त्रैलोक्यनाथ बसु था जो कि शहर के तहसीलदार थे और मां लक्ष्मीप्रिया देवी एक धर्मनिष्ठ महिला थी । उनका जन्म पश्चिम बंगाल के मेदिनिपुर जिले के बहुवैनी में हुआ था। जब वे छोटे थे तभी  उनके माता-पिता का निधन हो गया था। उसके बाद उनकी बहन ने उनका देखभाल किया था। खुदीराम बोस पर भगवद गीता के कर्म अध्याय का गहरा असर था। खुदीराम बोस स्कूली दिनों से ही राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सा लेने लगे थे। 


नौंवी  कक्षा के बाद 1905 में बंगाल के विभाजन की नीति से असंतुष्ट होकर उन्होंने जुगांतर की सदस्यता ले ली थी। यह संगठन क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम देता था। 16 साल के किशोर वय में बोस ने पुलिस स्टेशन के पास बम फेंके और सरकारी अधिकारियों को निशाना बनाया। सिलसिलेवार बम धमाकों के सिलसिले में उन्हें गिरफ्तार किया गया था। जेल में उन्हें बहुत यातनाये दी गयी थी, इसके बावजूद उन्होंने अपने सगंठन के बारे में कोई जानकारी नही दी ।कलकत्ता में उन दिनों किंग्सफोर्ड चीफ प्रेंसीडेसी मजिस्ट्रेट थावह बहुत सख़्त और क्रूर अधिकारी था।वह अधिकारी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और देश भक्तो को बहुत तंग करता था। इनलोगों पर वह कई तरह के अत्याचार करता था,


 क्रांतिकारियों ने उसे मार डालने की ठान ली थी। खुदीराम बोस की मुकदमा लड़ने के लिए कई बड़े वकील तैयार थे, आखिरकार जज ने खुदीराम बोस को फाँसी की सजा सुना दी, उन्होंने मुस्कराते हुए इस क्रूर निर्णय स्वीकार कर लिया।
खुदीराम बोस को 11 अगस्त 1908 सुबह 6 बजे अंग्रेजों ने फांसी का फंदा दे दी। जब खुदीराम शहीद हुए थे तब उनकी आयु 18 वर्ष थी। शहादत के बाद खुदीराम इतने लोकप्रिय हो गए कि बंगाल के जुलाहे उनके नाम की एक ख़ास किस्म की धोती बुनने लगे। इस शोक में कई दिन तक स्कूल कॉलेज बंद रहे और नौजवानों ने धोती के किनारी पर खुदीराम लिखा पहनना शुरू कर दिया ।