जलियाँवाला बाग हत्याकांड की घटना 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन अमृतसर के जलियाँवाला बाग में हुआ था।
दो नेताओं सत्यपाल और सैफ़ुद्दीन किचलू को गिरफ्तार कर कालापानी की सजा दी गयी थी। लेकिन ब्रिटिशो द्वारा 10 अप्रैल 1919 को अमृतसर के उप कमिश्नर के घर पर इन दोनों नेताओं को रिहा करने की माँग मे शांतिप्रिय और सभ्य तरीके से विरोध प्रकट कर रही जनता पर गोलियाँ चला दीं गयी, जिससे तनाव बहुत बढ़ गया और उस दिन कई बैंकों, सरकारी भवनों, टाउन हॉल, रेलवे स्टेशन में आगज़नी की गई। इस प्रकार हुई हिंसा में 5 ब्रिटिश अधिकारी मारे गए। इसके विरोध में ब्रिटिश सिपाही भारतीय जनता पर जहाँ-तहाँ गोलियाँ चलाने लगे जिसमें 8 से 20 भारतीयों की मृत्यु हुई। इसके बाद हिंसा पंजाब के कई क्षेत्रों में फैल गई और 3 अन्य यूरोपीय नागरिकों की हत्या हुई। ब्रिटिशों ने पंजाब के अधिकतर भाग पर सैनिक शासन ( मार्शल लॉ ) लागू कर दिया।
18 मार्च 1919 में रॉलेट एक्ट ( काला कानून ) पास हुआ था। यह कानून तत्कालीन ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत में उभर रहे राष्ट्रीय आंदोलन को कुचलने के लिए बनाया गया था। इस कानून के तहत ब्रिटिश सरकार को ये अधिकार प्राप्त हो गया था, कि वह किसी भी भारतीय पर अदालत में बिना मुकदमा चलाए, उसे जेल में बंद कर सकती थी। जिसका विरोध गाँधी जी सत्याग्रह के द्वारा कर रहे थे। इसके बाद अमृतसर में ‘हड़ताल’ में शामिल होने वाले कुछ नेताओं ने 12 अप्रैल 1919 को रॉलेट एक्ट के खिलाफ प्रस्ताव पारित करने और गिरफ्तार किये गये दोनों नेताओं को जेल से रिहा करवाने के लिए मुलाकात की। इसमें उन्होंने यह निर्णय लिया कि अगले दिन जलियांवाला बाग में एक सार्वजनिक विरोध सभा आयोजित की जाएगी।
जब 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन अमृतसर के जलियाँवाला बाग में एक सार्वजनिक सभा का आयोजन किया गया उसमे सैकड़ो लोग शामिल हुए थे धीरे-धीरे लोग आस-पास के गांव के जो मेला देखने आए थे वे लोग भी इस सभा को देखने आने लगे। जब कुछ नेता भाषण दे रहे थे तब अचानक जनरल डायर (जनरल रेजीनॉल्ड डायर) 90 ब्रिटिश सैनिको को लेकर वहां पहुचा सैनिको ने सभा स्थल को चारों तरफ से घेर लिया और बिना चेतावनी दिए निहत्थे लोगो पर डायर ने गोलियां चलाने का आदेश दे दिया। इस भगदड़ में लोग अपनी जान बचाने के लिए चारदीवारी पर चढ़कर भागने की कोशिश करने लगे लेकिन उनको भी गोलियां मार दी गई थी, कुछ लोग जान बचाने के लिए मैदान में मौजूद एक कुएं में कूद गए, पर देखते ही देखते वह कुआं भी लाशों से पट हो गया लगभग 10 मिनट में कुल 1550 राउंड गोलिया चलाई गई , जिसमे 1000 लोग मारे गए। इस घटना में नौजवान, महिलाये,बूढ़े, और बच्चे शामिल थे,
जलियाँवाला बाग से पूरा देश सहम गया।इस क्रूरता ने पूरा देश को मौन कर दिया। 18 अप्रैल 1919 को गांधी जी ने अपना सत्यग्राह वापस ले लिया ।
इस हत्याकांड की विशवभर में निंदा होने लगी जिस कारण ब्रिटिश सरकार दाबाब में आकर इस हत्याकांड की जांच हेतु "हंटर कमीशन " को नियुक्त किया । कमीशन के सामने जनरल रेजीनॉल्ड डायर ने स्वीकार किया कि वह गोली चला कर लोगों को मार देने का निर्णय पहले से ही ले कर गया था और वह उन लोगों पर चलाने के लिए दो तोपें भी ले गया था जो कि उस संकरे रास्ते से नहीं जा पाई थीं। हंटर कमीशन की रिपोर्ट आने पर 1920 में ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर को पदावनत कर के कर्नल बना दिया गया। और उसे ब्रिटेन भेज दिया गया , 1920 में डायर ने इस्तीफा दे दिया। 1927 में बड़े बीमारियों के वजह से मौत हो गई।
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