कैसा था भारत पाकिस्तान बटवारे का दौर । आखिर क्यों करना पड़ा भारत से पाकिस्तान अलग देश।
अंग्रेजों ने भारत से अपनी हुकूमत खत्म करने से पहले हिन्दू और मुसलमानो में फूटमत डाल दिया । और बंटवारे का बहुत बड़ी वजह बन गया। इस बंटवारे की वजह से एक करोड़ से भी ज्यादा लोगों को अपनी-अपनी मातृभूमि छोड़कर जाना पड़ा था और एक लाख से ज्यादा लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था।ब्रिटिश हुकूमत में मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र को पाकिस्तान और हिंदु वाले क्षेत्र को भारत घोषित किया था।
1947 से कुछ वर्ष पहले से ही ब्रिटिश हुकूमत को यह आभास होने लगा था कि उनके लिए भारत पर राज करना अब महंगा साबित हो रहा है। दूसरे विश्य युद्ध के बाद ब्रिटेन की आर्थिक स्थिति बदतर हो रही थी। अंग्रेजी नेताओं को अपने ही देश में ही जवाब देना भारी पड़ रहा था।
1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान अंग्रेजी सेना की 55 बटालियनों को तैनात करने की वजह से दंगे भड़क गए थे। इसके अलावा खाद्यान्न संकट, सूखा और बढ़ती बेरोजगारी ने अंग्रेजों के लिए भारत पर राज करना महंगा पड़ने लगा। 1942 में बंगाल के अकाल हो गया । इससे भी भारतीय जनता में आक्रोश बढ़ गया था। उस वक्त तक अंग्रेजों की तरफदारी करने वाली मुस्लिम लीग का मोह भी उनसे भंग हो गया था।
16 अगस्त 1947 को मोहम्मद अली जिन्ना ने मांग करने लगा कि मुस्लिमों के लिए पाकिस्तान नाम से एक अलग मुल्क घोषित किया जाए। इस मांग ने जोर पकड़ा तो पूरा उत्तर भारत दंगे की आग में जल उठा। हजारो लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। इस दंगे से ब्रिटिश हुकूमत की बंटवारे की योजना को बल मिल गया। उन्होंने यह तय किया कि हिंदू और मुस्लिम एक ही देश में मिलकर नहीं रह सकेंगे, इसलिए मुल्क का बंटवारा जरूरी है
14 अगस्त 1947 को भारत का बंटवारा कर पाकिस्तान बना दिया गया । 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान में स्वतंत्रता दिवस का जश्न और भारत में 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता दिवस मनाया गया। लेकिन दोनों देशों के बीच सीमा रेखा का निर्धारण 17 अगस्त 1947 को किया गया। ब्रिटेन के वकील साइरिल रेडक्लिफ ने भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा का निर्धारण किया था।
उन्होंने कुछ पुराने जर्जर नक्शों पर दोनों देश का सीमा को तय किया था। बंटवारे की लकीर को खींचने के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा 1940 में कराई गई जनगणना को आधार बनाया गया था। भारत और पाकिस्तान का बंटवारा जल्दबाजी में किया गया । वहीं भारत के अंतिम वायसराय लुईस माउंटबेटन ने भी महत्वपूर्ण मसलों पर विमर्श किए बगैर ही ब्रिटिश शासन के अंत की घोषणा कर दी थी।
भारत के विभाजन से करोड़ों लोग प्रभावित हुए। विभाजन के दौरान हुई हिंसा में करीब 10 लाख लोग मारे गए और करीब 1.45 करोड़ शरणार्थियों ने अपना घर-बार छोड़कर बहुमत संप्रदाय वाले देश में शरण ली।
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