जब तक तोड़ेंगे नही तब तक छोड़ेंगे नही ! माउंटेन मैन की कहानी।
दशरथ मांझी का जन्म 14 जनवरी 1929 में गहलौर गांव के एक गरीब मजदूर घर हुआ था। उनका निधन पित में कैंसर के कारण 17 अगस्त 2007 को हो गया ।
दशरथ माँझी का घर एक बेहद पिछड़े इलाके में था और मुसहर (ST) जाति के थे। वे जिस गांव में रहते थे वहाँ से पास के कस्बे जाने के लिए एक पूरा पहाड़ गहलोर पर्वत पार करना पड़ता था। छोटी से छोटी जरूरत के लिए उस पूरे पहाड़ को या तो पार करना पड़ता था या उसका चक्कर लगाकर जाना पड़ता था।
दशरथ माँझी का घर एक बेहद पिछड़े इलाके में था और मुसहर (ST) जाति के थे। वे जिस गांव में रहते थे वहाँ से पास के कस्बे जाने के लिए एक पूरा पहाड़ गहलोर पर्वत पार करना पड़ता था। छोटी से छोटी जरूरत के लिए उस पूरे पहाड़ को या तो पार करना पड़ता था या उसका चक्कर लगाकर जाना पड़ता था।
उन्होंने कई वर्षों तक झारखंड के धनबाद कोयला खदानों में काम किया। कुछ साल बाद जब वह अपने गांव पर लौटे तो उनको गांव की एक खूबसूरत लड़की फाल्गुनी देवी से प्यार हो गया। उस समय बाल विवाह प्रचलन चल रहे थे। उन्होंने फाल्गुनी देवी से शादी की। दशरथ माँझी जब पहाड़ के दूसरे छोर पर लकड़ी काट रहे तब उनकी पत्नी (फाल्गुनी देवी ) उनके लिए खाना ले जा रही थी, फाल्गुनी फिसल गई और गंभीर रूप से घायल हो गई। यह एक आपात स्थिति थी क्योंकि वह गर्भावस्था के एक उन्नत चरण में थी। दशरथ मांझी ने उसे खून से लथपथ अवस्था में पाया और उसे अस्पताल ले गए। अस्पताल 70 किमी दूर पहाड़ी के दूसरी तरफ था। अस्पताल पहुंचने के लिए उसे पहाड़ी के चारों ओर कठिन लंबा रास्ता तय करना पड़ा, समय पर इलाज , दवाइयां न मिलने के कारण उनका निधन हो गया।
अपनी पत्नी की मृत्यु से क्रोधित होकर उसने प्रतिज्ञा की " जब तक तोड़ेंगे नही तब तक छोड़ेंगे नही " वह अकेले ही गहलौर की पहाड़ी तोड़ने के लिए छैनी और हथौड़ी लेकर निकल पड़े , गांव वाले उस समय हँस रहे थे। कुछ लोग मजाक उड़ा रहे थे पागल हो गया , हालांकि कुछ वर्षों बाद लोग चंदा स्वरूप मदद भी करने लगे थे। 22 वर्षों (1960-1982) कड़ी मेहनत के बाद 360 फुट लंबी 30 फुट चौड़ी और 25 फुट ऊँचे पहाड़ को काटकर सड़क बना डाली। जिसे दशरथ मांझी मार्ग के नाम से जाना जाता है।
अपनी पत्नी की मृत्यु से क्रोधित होकर उसने प्रतिज्ञा की " जब तक तोड़ेंगे नही तब तक छोड़ेंगे नही " वह अकेले ही गहलौर की पहाड़ी तोड़ने के लिए छैनी और हथौड़ी लेकर निकल पड़े , गांव वाले उस समय हँस रहे थे। कुछ लोग मजाक उड़ा रहे थे पागल हो गया , हालांकि कुछ वर्षों बाद लोग चंदा स्वरूप मदद भी करने लगे थे। 22 वर्षों (1960-1982) कड़ी मेहनत के बाद 360 फुट लंबी 30 फुट चौड़ी और 25 फुट ऊँचे पहाड़ को काटकर सड़क बना डाली। जिसे दशरथ मांझी मार्ग के नाम से जाना जाता है।
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